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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2776
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 12

बहुस्तरीय नियोजन की संकल्पना

(Concept of Multi Level Planning)

प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।

उत्तर -

बहुस्तरीय नियोजन
(Multilevel Planning)

भारत में प्रादेशिक असमानताओं को कम करने के लिए बहु-स्तरीय नियोजन वि-नीति बनायी गयी है जिसमें राज्य, जिला तथा खण्ड स्तर पर कार्यकुशल नियोजन प्रणाली अपनायी गयी है, जो प्रादेशिक असन्तुलन को कम करने की महत्वपूर्ण व केन्द्रित नियोजन प्रणाली मानी गयी है। इसके तहत केन्द्र से राज्यों को, राज्यों से जिलों व विकास खण्डों को वित्तीय साधनों का हस्तान्तरण किया जाता है, जिसका मुख्य आधार 'पिछड़ेपन' को माना जाता है। किसी भी प्रदेश के क्षेत्रीय विकास के लिए अपनाया गया एक स्तरीय प्रारूप केवल एक ही क्षेत्र को विकसित करने में समर्थ होता है। अतः समग्र विकास के लिए विभिन्न शीर्षिक गतिविधियों, जैसे- कृषि, औद्योगिक प्रक्रिया, यातायात के साधनों का विकास, सिंचाई के साधनों का विकास तथा शैक्षणिक संस्थाओं का विकास आदि को नियमित रूप से विकसित करना आवश्यक है। असमानताओं को कम करने में अधिक लाभदायक सिद्ध होता है। भारत में प्रचलित बहुस्तरीय नियोजन की रूपरेखा निम्नलिखित हैं-

1. केन्द्र स्तरीय नियोजन - राष्ट्रीय महत्व के कार्यों, जैसे-रेलवे, बड़े बन्दरगाह, राष्ट्रीय राजमार्ग तथा अनुसंधान समस्याएँ, वृहद् शक्ति परियोजनाएँ, वृहद स्तर पर खनन कार्य तथा बड़ी सिंचाई परियोजनाओं आदि को केन्द्र सरकार द्वारा संचालित करने चाहिए जबकि विकास के अन्य क्षेत्रों को राज्य तथा अन्य निचले स्तरों को हस्तान्तरित किया जाना चाहिए इनमें कृषि, भूमि - विकास, पशुपालन, मत्स्यपालन, वानिकी, आवास, जलापूर्ति, स्वास्थ्य, सफाई, स्कूली शिक्षा व प्रौढ़ शिक्षा तथा स्थानीय विपणन आदि प्रमुख हैं।

2. राज्य स्तरीय नियोजन - राज्य स्तर पर सभी क्षेत्रों को समान रूप से प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन जिस सम्भाग में सबसे अधिक विकास की आवश्यकता महसूस की जाती है, वहाँ अधिक योजनाओं के आयाम तय किये जाते हैं। राज्य स्तर पर नियोजन की मशीनरी गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक व पश्चिम बंगाल में काफी सुदृढ़ है लेकिन देश के अन्य राज्यों में अभी यह कमजोर दशा में है, जबकि जिला स्तर एवं खण्ड स्तर पर संगठित होना शेष है। राज्य स्तर पर नियोजन प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिए 1972 में योजना आयोग ने एक योजना बनाई। नियोजन प्रक्रिया का विकेन्द्रीकरण आवश्यक मानकर 1978-83 के दौरान विकास खण्ड के नियोजन का प्रादुर्भाव किया जिसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण विकास कार्यक्रम को स्थानीय संसाधनों के उपयुक्त उपयोग द्वारा सुदृढ़ बनाना था।

3. जिला स्तरीय नियोजन - जिला स्तरीय नियोजन बह -स्तरीय नियोजन का ही एक उपतंत्र है, जिसमें एक नियोजन को एक तरफ राज्य नियोजन से तथा दूसरी ओर विकास खण्ड नियोजन से जोड़ना आवश्यक माना गया है। विकास खण्ड स्तर पर पंचायत समितियाँ विकास कार्यों की निगरानी रखती हैं। यहीं से स्थानीय स्तर नियोजन (Local Level Planning) प्रारम्भ होता है जो विकास खण्ड एवं 'ग्राम' स्तर तक पहुँचता है।

4. खण्ड स्तरीय नियोजन - “विकास खण्ड स्तर पर नियोजन" पर दाँतेवाला समिति तथा “पंचायती राज संस्था" पर अशोक मेहता समिति का गठन योजना आयोग द्वारा किया गया जिसके उपरान्त विकास खण्ड के स्तर पर नियोजन के विचार पुनः प्रभावी हुए, क्योंकि योजना आयोग की मान्यता रही है कि विकास खण्ड नियोजन की प्राथमिक इकाई है तथा इसी के द्वारा स्थानीय पर्यावरण एवं क्षमता के अनुसार नियोजन किया जा सकता है। दाँतेवाला समिति ने निम्नलिखित क्रियाओं को विकास खण्ड स्तर पर नियोजित तथा क्रियान्वित करने की अनुशंसा प्रस्तुत की-

(1 )  मत्स्यन (Fisheries)
(2)  मृदा संरक्षण एवं जल प्रबन्ध (Soil Conservation and Water )
(3)  सार्वजनिक सुविधाएँ (Social Amenities)-
(i) आवास,
(ii) स्थानीय परिवहन,
(iii) शिक्षा,
(iv) स्वास्थ्य तथा पोषण,
(v) जनकल्याण कार्यक्रम, सफाई,
(vii) पेयजल आपूर्ति,
(4)  गौण सिंचाई,
(5)  कृषि एवं सम्बन्धित कार्य,
(6) 
वानिकी,
(7)  कुटीर एवं लघु उद्योग,
(8)  स्थानीय आधारभूत सुविधा,
(9)  पशुपालन एवं मुर्गीपालन,
(10)  कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण,
(11)  कृषि के लिए उर्वरक, कीटनाशक आदि साधन जुटाना,
(12)  स्थानीय युवकों को प्रशिक्षण तथा स्थानीय जनसंख्या के कौशल में वृद्धि

विकास खण्ड के स्तर पर अनेक समस्याएँ सामने आती हैं, जिनमें इस स्तर पर कोई संगठित क्रियान्वयन संस्था का अभाव प्रमुख समस्या है। विकास खण्ड अधिकारी योजनाओं को ऊपर के निर्देशों के अनुसार क्रियान्वित करना अपना उत्तरदायित्व मानता है। विकास खण्ड स्वयं भी योजना बनाने में सक्षम नहीं है। अतः लघु स्तर पर नियोजन के लिए उपयुक्त नियोजन इकाई की आवश्यकता है, जो निर्णय करने में ऊपरी दबाव से मुक्त हो तथा सक्षम हो।

5. स्थानीय स्तर नियोजन - भारत की बहु-स्तरीय नियोजन प्रक्रिया का यह सबसे निचला स्तर है। इस स्तर पर देश में नियोजन के तीन प्रारूप मिलते हैं स्थानीय स्तर पर भारतीय जनसंख्या की आर्थिक रूपरेखा में पायी जाने वाली विविधता के कारण विकसित ये तीन प्रारूप निम्न प्रकार हैं-

(i) ग्राम-स्तरीय नियोजन - इसकी इकाई ग्राम पंचायत है तथा इस स्तर के नियोजन की प्रक्रिया पंचायत समिति के माध्यम से सम्पन्न होती है।

(ii) पहाड़ी क्षेत्र नियोजन - यह उन क्षेत्रों में कार्यान्वित है, जहाँ की आर्थिक गतिविधियाँ ग्राम-स्तरीय नियोजन के प्रदेशों से भिन्न हैं।

(iii) जनजातीय क्षेत्र नियोजन - ऐसा नियोजन उन क्षेत्रों में प्रचलित है, जहाँ का न केवल आर्थिक जन-जीवन ही भिन्न है बल्कि इनकी सांस्कृतिक बनावट इस स्तर के दो अन्य वर्षो से काफी भिन्न है।

इस स्तर के नियोजन के अन्तर्गत शामिल प्रमुख गतिविधियाँ निम्न प्रकार हैं-

(i) कृषि का स्थानीय / जमीनी स्तर पर प्रोत्साहन
(ii) ग्रामीण उद्योग
(iii) चिकित्सा सुविधाएँ
(iv) मातश्त्व (प्रसूति), महिला एवं बाल कल्याण
(v) सामुदायिक चारागाह का रख-रखाव
(vi) ग्रामीण सड़क, टैंक एवं कुएँ
(vii) सफाई एवं अन्य सामाजिक- आर्थिक कार्यक्रमों का कार्यान्वयन।

बहुस्तरीय नियोजन के प्रत्येक स्तर पर प्रमुख कार्य निवेश की मात्रा को निर्धारित करना होता है, जिसके उपरान्त इसका आवंटन आर्थिक क्षेत्रों, विकास खण्डों व परियोजनाओं आदि के अनुसार किया जाता है। नियोजन अभिकरण में अर्थशास्त्रियों, तकनीकी विशेषज्ञों तथा प्रशासकों के पूर्ण सहयोग की अपेक्षा की जाती है। नियोजन का यह पूर्ण कार्य व्यावसायिक होना आवश्यक है। भौतिक साधनों का निरन्तर सर्वेक्षण करते रहना चाहिए ताकि विभिन्न अज्ञात आर्थिक साधनों को तलाशकर उनका दोहन किया जा सके। इस प्रकार जनता द्वारा चयनित पंचायतों को भी विकास कार्यों के संचालन में अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  3. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
  4. प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
  6. प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
  7. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  11. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  12. प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
  13. प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
  16. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
  19. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
  20. प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
  22. प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
  27. प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
  28. प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  32. प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  33. प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
  34. प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
  37. प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
  39. प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
  40. प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
  41. प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
  42. प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
  43. प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
  44. प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  45. प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
  46. प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  47. प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
  48. प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
  49. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  52. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
  54. प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
  57. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
  58. प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
  59. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
  60. प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
  61. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
  62. प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
  63. प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
  64. प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
  65. प्रश्न- सतत विकास के सामाजिक घटकों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  67. प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
  68. प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
  69. प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
  70. प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
  71. प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  72. प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
  73. प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
  74. प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  78. प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
  79. प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
  84. प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
  85. प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
  86. प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
  87. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
  88. प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
  89. प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
  90. प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
  92. प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
  93. प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
  94. प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?

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